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महाराष्ट्र में भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए अब तक 24 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन अब भी कई सीटों पर पेच फंसा हुआ है। एकनाथ शिंदे और भाजपा के बीच नासिक, कोल्हापुर, हिंगोली सीट को लेकर मतभेद हैं। दोनों ही इन तीन सीटों पर दावे कर रहे हैं। वहीं अब एकनाथ शिंदे के गढ़ ठाणे को लेकर भी तनातनी की स्थिति बन गई है। इस सीट पर भाजपा ने दावा कर दिया है, जिसे छोड़ना एकनाथ शिंदे के लिए मुश्किल होगा। इसकी वजह यह है कि ठाणे सीट उनका गढ़ मानी जाती है और वह यहीं रहते आए हैं और उनका जनाधार है।
दरअसल ठाणे सीट का इतिहास है कि यह भगवा खेमे के पास ही रही है। 1996 तक यहां से भाजपा का सांसद होता था। जगन्नाथ पाटिल और राम कपसे जैसे नेता लोकसभा के लिए यहीं से चुने गए थे। लेकिन एकनाथ शिंदेके राजनीतिक गुरु रहे आनंद दिघे ने इस सीट को लेकर दबाव बनाया था और यह शिवसेनाके खाते में आ गई थी। इसके बाद से ही इस सीट से शिवसेना का उम्मीदवार होता रहा है। यही नहीं 2009 को छोड़ दें तो हर बार इस सीट से शिवसेना कैंडिडेट को जीत भी मिली है।
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इस बार भाजपा दावा कर रही है कि ठाणे में उसकी ताकत ज्यादा है। ठाणे के कुल 6 विधायकों में से तीन भाजपा के ही हैं। एक निर्दलीय विधायक भी भाजपा के ही समर्थन में है। इसके अलावा स्थानीय निकायों में भी भाजपा से जुड़े ज्यादातर लोग ही पदों पर बैठे हैं। इसी वजह से भाजपा एकनाथ शिंदे गुट से कह रही है कि वह इस सीट पर दावा न करे। 2014 के बाद से अब तक शिवसेना के राजन विखरे यहां से सांसद थे, लेकिन अब वह उद्धव ठाकरे के खेमे में हैं। उन्हें फिर से उद्धव ने कैंडिडेट भी बना दिया है।
एकनाथ शिंदे की असल परेशानी यही है कि मौजूदा सांसद उनके खेमे में नहीं हैं। भाजपा यहां से संजय केलकर या फिर पूर्व सांसद संजीव नाइक को उतारना चाहती हैं। वहीं एकनाथ शिंदे अपने इस किले को छोड़ना नहीं चाहते। वह यहां से विधायक प्रताप सरनाइक या फिर पूर्व मेयर नरेश म्हास्के को उतारना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि इस सीट को लेकर विवाद इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि खुद देवेंद्र फडणवीसजोर दे रहे हैं कि ठाणे का किला भाजपा के ही पास आ जाए।