नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव की छह हफ़्ते लंबी प्रक्रिया, धुआंधार प्रचार, सात चरणों में मतदान और तमाम दावों-वादों, एग्जिट पोल के बाद मंगलवार सवेरे से लोकसभा की 542 सीटों के लिए मतगणना जारी है.
आज मंगलवार को आंध्र प्रदेश की 175 और ओडिशा के 147 सीटों पर विधानसभा चुनावों के रुझान भी आने शुरू हो गए हैं. आंध्र प्रदेश विधान में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगूदेशम पार्टी 133 सीटों पर बढ़त के साथ बहुमत की ओर बढ़ती हुई दिख रही है तो ओडिशा विधानसभा के लिए आ रहे रुझानों में बीजेपी 80 सीटों के साथ राज्य में पहली बार सरकार बनाने की ओर बढ़ती हुई दिख रही है.
दोपहर 2:45 बजे तक के डेटा नेट के रुझानों में एनडीए (बीजेपी और सहयोगी पार्टियां 295 सीटों और इंडिया गठबंधन (कांग्रेस और सहयोगी पार्टियां) 231 सीटों पर आगे चल रहा है. वहीं अन्य 17 सीटों पर अन्य पार्टियों को बढ़त मिलती दिख रही है.
इन रुझानों के बीच एक मुख्य विषय अल्पसंख्यकों की और देखते हैं की मुसलमान हमेशा भारतीय राजनीतिक में चर्चा में रहते रहे हैं, बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय को राजनीति में आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिला हो आज़ादी के बाद ऐसा शायद कभी नहीं हो पाया है.
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल, जहां मुस्लिम आबादी काफी है, वहां 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत पाया था.
2019 में इस समुदाय से दोनों राज्यों से छह-छह सांसद जरूर चुने गए थे.
बता दें कि लोकसभा में सबसे ज़्यादा 49 मुस्लिम सांसद 1980 में चुने गए थे. 2004 में 34 मुस्लिम सांसद चुने गए थे, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए ने सरकार बनाई थी. 2014 यानि 16वीं लोकसभा में 1952 के बाद से मुसलमानों का सबसे कम प्रतिनिधित्व रहा जब सिर्फ 23 मुस्लिम सांसद ही लोकसभा में पहुंचे थे. 17वीं लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या में चार की बढ़ोतरी हुई और 27 उम्मीदवार लोकसभा का चुनाव जीते थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा था, लेकिन पार्टी ने जिस मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा किया, उन्होंने पार्टी को निराश नहीं किया था.
वैसे बता दें कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, एनसीपी और सीपीआई (M) ने इस बार लोकसभा में सिर्फ 78 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, हालाकि 2019 में यह संख्या 115 थी.
भाजपा ने इस बार भी एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, केरल की मुस्लिम बहुल मलप्पुरम सीट से चुनाव मैदान में उतरे एम अब्दुल सलाम पार्टी के 400 प्रत्याशियों में एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं, जो कालीकट विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं.
जेडीयू ने भी सिर्फ एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा.
हालांकि इस बार पिछले चुनावों की तुलना में बड़ी पार्टियों ने कम मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, बावजूद इसके मौजूदा लोकसभा के रुझानों से साफ़ है कि इस बार मुस्लिम सांसदों की संख्या पिछली लोकसभा के मुकाबले ज़्यादा हो सकती है.
अभी तक के रुझान अनुसार अधिकांश मुस्लिम प्रत्याशी बढ़त लिये हुए हैं यानि जीत रहें हैं.
जिनमें उत्तरप्रदेश से 6 हैं ईनमे से 4 सपा के और 2 कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार हैं. जबकि लद्दाख, असम और बैंगलोर से मुस्लिम उम्मीदवार विजय हो गए हैं. यहीं हालात पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरला आदि राज्यों में हैं.