“इल्म की रोशनी से मुल्क की तक़दीर बदल दो” – यह सिर्फ़ एक जुमला नहीं, बल्कि हिंदुस्तान के पहले शिक्षा मंत्री और जद्दोजहद-ए-आज़ादी के अज़ीम सिपाही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का पैग़ाम था। उनका जीवन, उनकी सोच और उनका मिशन सिर्फ़ एक दौर तक महदूद नहीं रहा, बल्कि आज भी उनकी तालीम, खिदमत और समाज सुधार की रोशनी हमें राह दिखा रही है।
बचपन से ही इल्म की तलाश
11 नवंबर 1888 को मक्का में पैदा हुए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का असल नाम मोहिउद्दीन अहमद था। उनका ताल्लुक एक आलिम घराने से था, इसलिए तालीम की तरफ़ उनका रुझान बचपन से ही था। छोटी उम्र में ही उन्होंने अरबी, फ़ारसी, उर्दू और अंग्रेज़ी में महारत हासिल कर ली थी। उनकी इल्मी सलाहियतों ने उन्हें एक आला दर्जे का मुफस्सिर, पत्रकार और लेखक बना दिया।
आज़ादी की जद्दोजहद और कुर्बानियां
मौलाना आज़ाद सिर्फ़ इल्म ही नहीं, बल्कि हिम्मत और हौसले का भी दूसरा नाम थे। उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई को तहरीरों और तक़रीरों के ज़रिए मज़बूत किया। जब उन्होंने ‘अल-हिलाल’ और ‘अल-बलाग़’ जैसे अख़बार निकाले, तो ब्रिटिश हुकूमत उनके क़लम की धार से घबरा गई और उन पर पाबंदी लगा दी गई। 1920 में वह गांधी जी के क़रीबी बने और खिलाफत तहरीक, सविनय अवज्ञा आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें कई बार कैद किया, लेकिन उनके इरादे कभी कमज़ोर नहीं पड़े। 1940 में वे कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने, और उनकी क़ियादत में आज़ादी की तहरीक और तेज़ हो गई।
पहले शिक्षा मंत्री: तालीम की रोशनी से मुल्क को जगाया
1947 में जब हिंदुस्तान आज़ाद हुआ, तो मौलाना आज़ाद को मुल्क का पहला वज़ीर-ए-तालीम (शिक्षा मंत्री) बनाया गया। उन्होंने मुल्क की तालीमी बुनियाद को इतना मजबूत किया कि आज भी उनका योगदान मिसाल बना हुआ है। उनकी दूरदर्शिता और मेहनत का ही नतीजा है कि उन्होंने:
आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी जैसी संस्थाओं की बुनियाद रखी।
स्कूलों में फ्री और अनिवार्य शिक्षा लागू की।
हिन्दी, उर्दू और अन्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया।
सांस्कृतिक और वैज्ञानिक तालीम के दरवाज़े खोले।
कौमी एकता और इंसानियत के पैरोकार
मौलाना आज़ाद सिर्फ़ तालीम और सियासत तक महदूद नहीं थे, बल्कि वह कौमी एकता और भाईचारे के सबसे बड़े रहनुमा थे। जब मुल्क तक़सीम हुआ, तो उन्होंने मुसलमानों को हिंदुस्तान में रहने की तलकीन की और दिल्ली की जामा मस्जिद से एक ऐसी तक़रीर की, जिसने लाखों लोगों के दिलों में हौसला भर दिया।
“आओ अहद करो कि ये मुल्क हमारा है। हम इसी के लिए हैं और इसकी तक़दीर के बुनियादी फैसले हमारी आवाज़ के बगैर अधूरे ही रहेंगे।”
खिराज-ए-अकीदत
22 फरवरी 1958 को मौलाना आज़ाद इस दुनिया से रुख़सत हो गए, मगर उनकी इल्मी रोशनी आज भी हमारे लिए मशाल-ए-राह है। हम पर यह फ़र्ज़ बनता है कि उनके ख्वाबों के हिंदुस्तान को हकीकत में बदलें, जहां इल्म, मोहब्बत और भाईचारे की शमाएं हमेशा जलती रहें।
“एक अज़ीम रहनुमा, एक बेहतरीन आलिम और हिंदुस्तान की तक़दीर को संवारने वाले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को हमारा खिराज-ए-अकीदत!”