कमरअली दर्वेश की दरगाह में देखने मिली हिंदू मुस्लिम एकता के साथ रोज़ा इफ्तारी।
संवाददाता नामदेव गट्टे पुणे
पुणे से सटे शिवापुर में कमरअली दर्वेश की दरगाह में देखने मिली हिंदू मुस्लिम एकता के साथ रोज़ा इफ्तारी।
आज हमारे फाईट अगेंस्ट क्रिमिनल के संवाददाता पहुंचे शिवापुर हज़रत कमरअली दर्वेश की दरगाह पर वहां मौजूद सभी धर्म के लोगों से और दरगाह के खादीम साहब से एक खास मुलाकात ली और दरगाह के बारे जाने और साथ में वहां की रोज़ा इफ्तारी का भी लुत्फ उठाया। दरगाह के खादीम और इमाम साहब ने बताया की दरगाह में कीसी जाती का भेदभाव किए बीना हर मज़हब के लोग बाबा की दरगाह में आते हैं, उर्ष के दौरान भी हिंदू, मुस्लिम, शिख, इसाई सभी धर्म के लोग आते हैं, और अपनी अपनी मुरादें पाते हैं।
कमरअली दर्वेश दरगाह में रखे पत्थर का क्या है रहस्य?
दरगाह परिसर में एक पत्थर रखा हुआ है। इसका वजन 90 किलोग्राम है। जाहिर है कि इतना भारी पत्थर अकेले उठाना मुमकिन नहीं है। वैसे तो लोग अकेले इसे उठा लेते हैं, मगर कुल पल से ज्यादा देर तक थामकर नहीं रख सकते। ताज्जुब की बात यह है कि उसी पत्थर को जब 11 लोग एक साथ मिलकर उठाने की कोशिश करते हैं, तो वह पत्थर इतना हल्का महसूस होता है कि उसे कानी उंगली से भी उठाना मुमकिन हो जाता है।
ऐसी मान्यता है कि अगर 11 लोग एक साथ मिलकर, सूफी संत कमरअली शाह का नाम लेते हुए, कानी उंगली से पत्थर उठाने की कोशिश करेंगे, तो यह आसानी से उठ जाएगा। हालांकि, अगर गिनती में 11 से एक भी इंसान कम हुआ, तो इस पत्थर को कानी उंगली से उठाना मुमकिन नहीं। यही नहीं, अगर पत्थर उठाते वक्त 11 लोगों में से किसी एक शख्स ने भी संत का नाम नहीं लिया, तो पत्थर उसकी ओर झुक जाएगा। जब भी लोग इसे उठाते हैं, उनकी कोशिश होती है कि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त तक सांस थामकर फकीर बाबा का नाम लेते रहें।
पत्थर से जुड़ा है यह किस्सा
कहा जाता है कि जिस जगह आज दरगाह मौजूद है, वहां पहले एक व्यायामशाला हुआ करती थी। पहलवान वहां कसरत करते थे। कमरअली शाह दर्वेश के माता-पिता भी चाहते थे कि उनका बेटा भी पहलवानी करे, मगर कमरअली को इसमें दिलचस्पी नहीं थी। पहलवान इस बात के लिए उनका मजाक भी उड़ाते थे।
शरीर को गठीला बनाने के लिए पहलवान वहां पड़े भारी पत्थरों को उठाकर वर्जिश करते थे। हालांकि, फत्थर भारी होने की वजह से उठा पाना मुश्किल होता था। एक दिन जब वे सभी बलशाली लोग दुबली-पतली कद-काठी वाले संत की खिल्ली उड़ा रहे थे, तब उन्होंने कहा कि जिस पत्थर को उठाने में उनके पसीने छूट रहे हैं, वह तो सिर्फ उंगली से ही उठाई जा सकती है। पहले तो सभी ने संत का मजाक उड़ाया, मगर जब पहलवानों ने उनके बताए तरीके को आजमाते हुए पत्थर उठाने की कोशिश की, तो वह बड़ी आसानी से उठ गया।
आखिर उंगली से कैसे उठ सकता है इतना भारी पत्थर?
दरअसल, संत कमरअली दर्वेश यह सीख देना चाहते थे कि आध्यात्मिक शक्ति शारीरिक ताकत से ज्यादा प्रभावशाली होती है। इसलिए उन्होंने कहा कि जब लोग एक साथ सच्चे मन से उनका नाम लेते हुए पत्थर उठाएंगे, तो वह बड़ी आसानी से पत्थर उठाने में कामयाब हो जाएंगे।
कौन हैं कमरअली दर्वेश ?
कमरअली दर्।वेश सूफी संत थे। तकरीबन 800 साल पहले वह इस गांव में अपने माता-पिता के साथ आए थे। 18 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था जिसके बाद उनके पार्थिव शरीर को इसी जगह दफना दिया गया था। इस दरगाह में विदेशी भी मन्नत मांगने आते हैं। हालांकि, महिलाओं का प्रवेश यहां वर्जित है।
सांप और बिच्छू अगर कीसी कांट लेता है तो दरगाह के चिराग एक दिन देखने से जहेर पुरा उतर जाता है।