साज़िश के खिलाफ़ बगावत: कलेक्टर बेडेकर पर एफआईआर दर्ज कराने हेतु निजी परिवाद – वरिष्ठ पत्रकार विक्रम सेन ने सेशन न्यायालय में दायर किया प्रकरण

Shoaib Miyamoor
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सनसनीखेज़ साज़िश के खिलाफ़ बगावत: कलेक्टर बेडेकर पर एफआईआर दर्ज कराने हेतु निजी परिवाद – वरिष्ठ पत्रकार विक्रम सेन ने सेशन न्यायालय में दायर किया प्रकरण

पत्रकारिता पर बर्बर प्रहार: कलेक्टर की साज़िश, ₹1000 करोड़ की रियासत कालीन शाही पुश्तैनी संपत्तियों और जन धरोहर के नामांतरण घोटाले के खुलासे से बौखला कर पत्रकार को जिला बदर किया था।

 

आलीराजपुर। वरिष्ठ पत्रकार एवं निर्वाचित जनप्रतिनिधि नेता प्रतिपक्ष नपा परिषद, आलीराजपुर विक्रम सेन ने कलेक्टर डॉ अभय अरविंद बेडेकर के भ्रष्टाचार, प्रशासनिक शक्ति के दुरुपयोग और षड्यंत्रकारी कार्रवाइयों के खिलाफ़ ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई का बिगुल बजा दिया है।

 

दिनांक 19 अगस्त 2025 को सेशन न्यायालय आलीराजपुर में विक्रम सेन के अधिवक्ताओं द्वारा निजी परिवाद (Private Complaint) प्रस्तुत किया गया।

 

यह परिवाद न केवल जिले बल्कि पूरे प्रदेश की नौकरशाही में भूचाल ला सकता है।

 

परिवाद में आरोपी बनाए गए

 

1. डॉ. अभय बेडेकर – कलेक्टर, आलीराजपुर

2. जनसंपर्क अधिकारी, आलीराजपुर

3. अन्य अज्ञात सह–अभियुक्त

 

लगाए गए संगीन आरोप

 

परिवाद पत्र में दर्ज धाराएँ सीधे–सीधे लोक सेवक द्वारा सत्ता का दुरुपयोग, फर्जीवाड़ा, मानहानि, आपराधिक षड्यंत्र, भ्रष्टाचार और प्रेस स्वतंत्रता पर हमला सिद्ध करती हैं।

 

मुख्य धाराएँ

 

भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 175(3), 198, 201, 257, 258, 318(3), 335, 336(1)(2)(4), 338, 340(1)(2), 351(1)(2)(3), 356(1)(2), 409, 420, 467, 468, 471, 500, 120B

 

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7, 13(1)(d), 13(2)

 

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66, 72

 

लोकतंत्र की रीढ़ कही जाने वाली स्वतंत्र पत्रकारिता पर अभूतपूर्व हमला करते हुए आलीराजपुर कलेक्टर डॉ. अभय बेडेकर ने पत्रकार विक्रम सेन के खिलाफ़ जिला बदर की झूठी व मनगढ़ंत कार्यवाही कर दी।

 

यह कार्यवाही केवल पत्रकार की आवाज़ दबाने का प्रयास ही नहीं, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का प्रत्यक्ष उल्लंघन है।

 

प्राथमिक कारण: ₹1000 करोड़ की रियासत कालीन शाही पुश्तैनी संपत्तियों और ऐतिहासिक धरोहर की संदिग्ध वसीयत के नामांतरण घोटाले का पर्दाफाश किया था।

 

पत्रकार विक्रम सेन ने अपने निर्भीक समाचारों में उजागर किया कि —

 

आलीराजपुर की लगभग ₹1000 करोड़ मूल्य की गौरवशाली ऐतिहासिक रियासत कालीन शाही पुश्तैनी संपत्तियों को हड़पने और बेच खाने के लिए प्रस्तुत संदिग्ध वसीयत का ताबड़तोड़ नामांतरण मात्र 16 दिन में 9सितंबर 2024 को कर दिया गया था, जबकि पचासों दस्तावेज के साथ आधा दर्जन घोर आपत्तियों के बावजूद दूषित तरीके से रिश्वत लेकर कर दिया था। सत्य तथ्यों के साथ इन आरोपों के पक्ष में पचासों दस्तावेज के आधार पर विक्रम सेन ने कई समाचार नियमित प्रकाशित किए थे, इस नामांतरण और इस संपत्ति के राजस्व रिकॉर्ड दुरुस्ती में कलेक्टर बेडेकर की प्रत्यक्ष भूमिका उजागर हुई हैं। विक्रम सेन ने चुकी आलीराजपुर जिले के इतिहास पर सन् 2008 में पुस्तक लिखी थी तथा सन् 2014 में जिला मुख्यालय की आन बान शान और गौरवशाली धरोहर राजवाड़ा पैलेस को जनहित और इसके परिसर को जन उपयोग के लिए हुए जन आंदोलन की श्रृंखला का जागरूक साथियों के साथ मिलकर नेतृत्व किया था। इसी शुभ उद्देश्य के तहत विक्रम सेन ने शहर के प्रतिनिधि के तौर पर इसको बेच खाने के लिए की जा रही साज़िश को नियमित उजागर किया।

 

प्राचीन जनोपयोगी संपत्तियों का अवैध हस्तांतरण हुआ।

सरकारी पद का दुरुपयोग कर संगठित भ्रष्टाचार किया गया।

भारतीय दंड संहिता और अन्य विधिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन किया गया।

 

इन्हीं खुलासों से बौखलाकर कलेक्टर ने पत्रकार के खिलाफ़ प्रतिशोध की कार्रवाई की और जिला बदर का हथियार उठाया।

 

विशेष कानूनी बिंदु: Closure Report वाले मामलों का घोर दुरुपयोग

 

कलेक्टर द्वारा जिला बदर आदेश में ऐसे प्रकरण सम्मिलित किए गए, जिनमें —

 

पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट (Closure Report u/s 173(2) CrPC) प्रस्तुत कर दी थी। पुलिस द्वारा ही समाप्त इस झूठे प्रकरण के आरोप को जन संपर्क अधिकारी ने समाचार में प्रमुखता से उपयोग कर बदनाम किया।

 

न्यायालय ने उन मामलों को विधिक रूप से समाप्त मानते हुए स्वीकार भी कर लिया था।

 

जिला बदर प्रतिवेदन की विकृत स्थिति

 

विक्रम सेन के विरुद्ध प्रस्तुत जिला बदर प्रतिवेदन में 14 प्रकरणों का उल्लेख किया गया, इनमें से अधिकांश को न्यायालय में विचाराधीन दिखाया गया हैं जबकि वास्तविक सच्चाई यह है कि इनमें से –

 

10 प्रकरणों में न्यायालय से दोषमुक्ति (Acquittal) हो चुकी है। सन् 1995 से लेकर सन सन 2008 तक की सक्रिय छात्र राजनीति और जन आंदोलन के साथ युवावस्था के झूठे, फर्जी मामले थे, इन सभी में दोषमुक्ति सन 2010 तक ही हो गई थीं।

 

1 प्रकरण (सन् 2020) में पुलिस द्वारा Closure Report दी गई। मैसेज पर आधारित झूठा मामला था।

 

1 प्रकरण (2017) इंदौर न्यायालय में विचाराधीन हैं। इसमें आठ वर्षों में मात्र 4 गवाही हुई है। आरोपी के बयान पर मैसेज पर आधारित मामला हैं।

 

1 प्रकरण (धारा 188 BNS, सन 2025 में) यह भी सोशल मीडिया पर भ्रष्ट राजस्व अधिकारी की प्रताड़ना से तंग आकर एक पटवारी द्वारा आत्महत्या के प्रयास के समाचार पर आधारित हैं। जहर खुरानी का यह सही समाचार था। परन्तु कलेक्टर डॉ अभय बेडेकर ने इस पर राजस्व के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से एफआईआर दर्ज कराई। इसने स्वयं एक माह बाद जिला न्यायायिक दंडाधिकारी को आरोप संज्ञान में लेने हेतु पत्र लिखा ताकि आरोप न्यायालय द्वारा संज्ञान में लेने पर जिला बदर कार्यवाही में विचाराधीन प्रकरण बताकर सक्रिय आरोपी दिखाया जा सके, क्योंकि 15 वर्ष से आलीराजपुर जिले की किसी भी न्यायालय में विक्रम सेन के खिलाफ कोई प्रकरण लंबित नहीं था। और भ्रष्ट कलेक्टर को इसके बिना जिला बदर की फर्जी, दूषित झूठी कार्रवाई करने का आधार भी नहीं मिल रहा था। यह प्रकरण भी विसंगति पूर्ण, तथ्य हीन है इसका खात्मा होना तय हैं। इस मामले में मात्र ₹2500/- दंड होता हैं, इसमें भी न्यायालय में आज तक चार्ज तक आरोपित नहीं हुए हैं। दो हफ्ते से हाईकोर्ट इंदौर में इसके खात्मे हेतु याचिका दायर है।

 

1 प्रकरण (समीपस्थ गुजरात में शराब मामला) – अग्रिम जमानत प्राप्त, चार्जशीट न्यायालय में पेश नहीं, एक आरोपी के बयान पर इसमें फर्जी तरीके से नाम जोड़ा गया, हाईकोर्ट अहमदाबाद में खात्मे हेतु याचिका दायर है।

 

इस प्रकार 78% प्रकरण दोषमुक्त हैं और शेष 3 भी निराधार/लंबित/खारिज योग्य हैं। फिर भी इन्हें सक्रिय अपराध बताकर प्रतिवेदन में सम्मिलित किया गया।

 

बावजूद इसके कलेक्टर डॉ अभय बेडेकर ने अधिकांश मामलों को आलीराजपुर न्यायालय में विचाराधीन बताया है। जबकि इनके द्वारा ही दर्ज कराई गई रिपोर्ट पर चार्ज तक नहीं लगा है वहीं एकमात्र विचाराधीन है।

 

न्यायिक सिद्धांत:

 

Suresh @ Pappu Bhati v. State of M.P. (MP HC, 2011) – पुराने या खारिज प्रकरणों के आधार पर जिला बदर आदेश टिक नहीं सकता।

 

Prem Chand v. Union of India (SC, 1981) – मालाफाइड या तर्कहीन आदेश अनुच्छेद 14 व 21 का घोर उल्लंघन है।

 

इसका सीधा निष्कर्ष यह है कि बंद (Closed) मामलों का उपयोग कर जिला बदर आदेश देना न केवल “द्वैतीय अभियोजन” (Double Jeopardy, Art. 20(2)) है, बल्कि विधिक प्रक्रिया का क्रूर मज़ाक भी है।

 

खात्मा हो चुके प्रकरण = जिला बदर के लिए विधिक रूप से अप्रासंगिक

 

जिला बदर एक निवारक उपाय है, जिसका आधार केवल वर्तमान और निरंतर खतरा हो सकता है।

 

यदि कोई प्रकरण पुलिस जांच में खारिज (Closed) हो चुका है, तो वह अब “खतरा” नहीं है।

 

ऐसे प्रकरणों को शामिल करना पूर्वग्रहपूर्ण व दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही का पुख्ता सबूत है।

 

यह कलेक्टर की सोची-समझी रणनीति थी, जिससे पत्रकार को झूठे आरोपों में फँसाकर प्रशासनिक भ्रष्टाचार को छुपाया जा सके।

 

कलेक्टर डॉ. अभय बेडेकर का आपराधिक व भ्रष्ट आचरण

 

1. जुलाई 2023 – इंदौर अपर कलेक्टर रहते हुए डॉ. बेडेकर पर लोकायुक्त ने FIR दर्ज की थी। आरोप: पुलिस के साथ मिलकर प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग। यह मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है।

 

2. आलीराजपुर शाही परिवार ने भी डॉ. बेडेकर के खिलाफ़ भ्रष्टाचार की FIR हेतु लोकायुक्त में 36 संपूर्ण दस्तावेज़ों सहित एक पेन ड्राइव के साथ आवेदन प्रस्तुत किया है।

 

यह सिद्ध करता है कि स्वयं कलेक्टर भ्रष्टाचार और शक्ति-दुरुपयोग के आरोपी हैं। और अब पत्रकारों को झूठे मामलों में फँसाना उनकी आदत और रणनीति बन चुकी है।

 

यह भी कि प्रतिवादी कलेक्टर द्वारा प्रार्थी (पत्रकार) को बिना किसी ठोस तथ्य, आधार अथवा प्रमाण के, दुर्भावना एवं निजी विद्वेष वश जबरन घर छोड़ने पर विवश करना एवं प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग करना, संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा पत्रकारिता की स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन है। प्रतिवादी का उक्त आचरण भारतीय दंड संहिता की धारा 503, 506 (आपराधिक भयादोहन), धारा 166 (लोक सेवक द्वारा विधि विरुद्ध आदेश देना), तथा धारा 219 (अनुचित आशय से निर्णय / आदेश देना) के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

प्रतिवादी ने अपनी आधिकारिक शक्तियों का दुर्भावना पूर्ण उपयोग कर प्रार्थी को व्यक्तिगत शत्रुता के कारण झूठे एवं तथ्यहीन कार्य हेतु विवश किया, जो लोक सेवक के कर्तव्य की मर्यादा का उल्लंघन एवं सार्वजनिक पद की गरिमा के विपरीत आचरण है।

 

यह कार्यवाही आपराधिक भयादोहन (IPC 503, 506) और दुर्भावनापूर्ण शक्ति-दुरुपयोग का ज्वलंत उदाहरण है।

 

यह संविधान सम्मत नहीं, बल्कि असंसदीय व अलोकतांत्रिक कार्यवाही है।

 

पत्रकारिता पर प्रशासनिक शक्तियों से संपन्न कलेक्टर का यह हमला लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। बावजूद इसके लोकतंत्र और संविधान की मौजूदगी में इसका समापन सुखद होगा।

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