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अंतिम विदाई में भी दो मीटर जगह से वंचित करना यह राजनीतिक द्वेष नहीं.. तो क्या है..
सुनिल इंगोले
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर 16 अगस्त 2018 को उनके अंतिम संस्कार के लिए राष्ट्रीय स्मारक स्थल पर सात एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। लेकिन मनमोहन सिंह, जिन्हें “पोस्टमॉडर्न इंडिया के निर्माता” कहा जाता है, उनके लिए दो मीटर जमीन भी न देना सरकार की सोच और मानसिकता पर सवाल खड़े करता है।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारक स्थल पर अंतिम संस्कार के लिए जगह देने से इनकार करना, सरकार के कटु व्यवहार को दर्शाता है। डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्होंने देश को आर्थिक संकट से उबारा और मध्यवर्ग को “अच्छे दिन” दिखाए, उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जनता के दिलों में उनके लिए जो स्थान है, उसे कोई मिटा नहीं सकता।
डॉ. मनमोहन सिंह ने देश को आर्थिक अराजकता से बाहर निकालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में भारत ने आर्थिक उदारीकरण का नया युग देखा, जिसने देश को वैश्विक स्तर पर मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया। लेकिन मोदी सरकार ने उनके अंतिम संस्कार के लिए राष्ट्रीय स्मारक स्थल पर मात्र दो मीटर जगह देने से इनकार कर दिया, जो न केवल कृतघ्नता है, बल्कि राजनीतिक विद्वेष की पराकाष्ठा भी है। डॉ. सिंह ने भारत में उदारीकरण की नींव रखी, जिससे देश में विदेशी निवेश बढ़ा और लाखों मध्यमवर्गीय परिवारों को आर्थिक समृद्धि मिली। इसके विपरीत, मोदी सरकार ने निजीकरण के नाम पर सरकारी संपत्तियां अपने “मित्रों” को सौंप दीं।
“इतिहास करेगा इस कृतघ्नता की निंदा”
डॉ. मनमोहन सिंह की अंतिम संस्कार स्थल को लेकर उठे विवाद ने यह दिखा दिया कि वर्तमान सरकार में विरोधियों के प्रति सम्मान का अभाव है। हिंदू धर्म और हिंदुत्व की शिक्षाएं कहती हैं कि मृत्यु के बाद कोई वैर नहीं रहता, लेकिन मोदी-शाह का “हिंदुत्व” इस दर्शन के विपरीत केवल राजनीतिक द्वेष से प्रेरित दिखता है।
डॉ. सिंह का योगदान भारत के आर्थिक और राजनीतिक इतिहास में अमिट है। इतिहास इस कृतघ्नता और छोटेपन के लिए मोदी सरकार की आलोचना अवश्य करेगा।
मोदी सरकार का राजनीति में द्वेषपूर्ण रवैया
मोदी सरकार का यह कदम न केवल डॉ. सिंह के प्रति, बल्कि देश की जनता के प्रति भी असंवेदनशीलता को दर्शाता है। निगमबोध घाट पर डॉ. सिंह के अंतिम संस्कार के समय लाखों भारतीयों ने उनके प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट कीं। राहुल गांधी और कई अन्य नेताओं की आंखें नम हो गईं। रशिया, अमेरिका, और चीन जैसे देशों ने भी डॉ. सिंह को “भारत का महान नेता” मानते हुए श्रद्धांजलि दी। डॉ. सिंह ने कभी अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा नहीं पीटा। न ही उन्होंने कभी अपने राजनीतिक विरोधियों से बदले की राजनीति की। 1984 के सिख दंगों पर उन्होंने माफी मांगी, लेकिन इसके लिए कभी भी किसी अन्य को दोष नहीं ठहराया।