जवाहरलाल नेहरू PM नहीं होते तो वहीं थप्पड़ जड़ देती, जैकलीन कैनेडी ने एक बार कही थी ये बात।
राहुल गाँधी के नाना की इतनी स्ट्रांग थी विदेश नीति !!
देखिए ऐसी वो कहानी, जो बाद में जैकलीन कैनेडी की जुबानी दुनिया के सामने आई। इस फोटो में एक तरफ हैं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और दूसरी तरफ हैं अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी की पत्नी जैकलीन कैनेडी। फोटो में नेहरू जी अपने हाथों में जैकलीन कैनेडी का चेहरा थामे उन्हें मंत्र-विद्ध हो निहार रहे हैं, जबकि जैकलीन के चेहरे के भाव से स्पष्ट है कि उन्हें नेहरू की यह हरकत बिल्कुल पसंद नहीं आई है। इस घटना के कुछ दिनों बाद जैकलीन कैनेडी ने एक टाक-शो में वाकये को (इस तरह स्पर्श करने को) याद करते हुए कहा कि अगर नेहरू पीएम नहीं होते तो वह (जैकलीन) उन्हें वहीं थप्पड़ रसीद कर देतीं! यानी देखा जाए तो जैकलीन कैनेडी के थप्पड़ और नेहरू जी के गाल के बीच मात्र दो लफ़्ज़ों “पी.एम.” की दूरी थी! अगर वे पीएम ना होते तो क्या होता, ये जैकलीन ने ख़ुद बता दिया था।
क्या “हनी-ट्रैप” के शिकार हुए थे नेहरू? खुलासा जरूरी है…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों लोकसभा में विदेश नीति को लेकर कांग्रेस के “प्रौढ़” (आयु से) युवराज राहुल गांधी को एक किताब पढ़ने की नसीहत क्या दी, पूरा देश इतिहास के पन्ने पलटने लगा! हालांकि ज्यादातर लोगों की दिलचस्पी विदेश नीति में कम, और उन दो किरदारों में ज्यादा थी, जिनका जिक्र उस किताब में खास तौर पर किया गया है। इस किताब का नाम है – “जेएफके’ज फॉरगॉटेन क्राइसिस – टिबेट, द सीआईए एंड द साइनो-इंडियन वॉर” और इसको लिखने वाले का नाम है ब्रूस रिडल, जो कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के विश्लेषक माने जाते हैं।
ब्रूस रिडल ने अपनी किताब में जिस दौर की घटनाओं का जिक्र किया है, वे सन 1961-62 की हैं, जब भारत अपने कम्युनिस्ट पड़ोसी मुल्क चीन के साथ एक भयानक लड़ाई में उलझा हुआ था और हर दिन हार रहा था। इस जंग के खत्म होते तक भारत 4 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा जमीन चीन के हाथों गँवा चुका था। तब तक चीन के साथ “एकतरफा और अंधा दोस्ताना” ही भारत के लाडले प्रधानमंत्री की विदेश नीति का नमूना थी, “हिंदी-चीनी भाई-भाई” उस विदेश नीति का घोष-वाक्य था और अंततः भीषण सामरिक व कूटनीतिक हार के साथ पूरी दुनिया में इज्जत गंवाने की टीस उस विदेश नीति का मुकद्दर…
तो, इस किताब से पता चलता है कि जब चीन उत्तरी सीमा पर भारत की जमीन पर जबरन कब्जा कर रहा था और पंडित नेहरू के चीनी भाई जब भारतीय सैनिकों को जंग में शहीद कर रहे थे, तब भारत के प्रधानमंत्री और उनकी विदेश नीति क्या गुल खिला रही थी…अब राहुल गांधी यह किताब पढ़ें या ना पढ़ें, विदेश नीति का अध्ययन करें या ना करें, भारत के लोगों ने राहुल गांधी के नाना जी की नीति और नीयत, दोनों का अध्ययन अच्छे से कर लिया है।
ब्रूस रिडल ने अपनी किताब में लिखा है कि कैसे प्रधानमंत्री नेहरू उस दौरान भारत आए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी यानी जेएफके की पत्नी जैकलीन कैनेडी पर लट्टू हो गए थे। किताब के मुताबिक, मार्च, 1962 में अमेरिकी राष्ट्रपति की आधिकारिक भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी दूतावास ने कैनेडी दंपति व अन्य आगंतुकों के लिए एक विला बुक किया था, लेकिन जैकलीन कैनेडी पर फिदा नेहरू जी उन्हें अपनी आँखों से एक मिनट के लिए भी ओझल नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जैकलीन को प्रधानमंत्री आवास के एक दिलकश कमरे में ठहराने के लिए पूरा जोर लगा दिया। बताते हैं, ये वही कमरा था, जिसमें भारत के आखिरी ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन दिल्ली आने पर ठहरा करती थीं। (अब एडविना नेहरू के लिए कौन थीं, क्या थीं, कैसे थीं, क्यों थीं, वगैरह-वगैरह की जानकारी आप गूगल बाबा से पूछ लीजिए। वो सब बता देंगे).
तो, 33 साल की हसीन-ओ-जवां जैकलीन के आगे-पीछे घूमते 73 साल के नेहरू की कुछ ऐसी हरकतें लोगों ने जरूर देखी होंगी, जो बाद में वाया-वाया यानी सीआईए के एक कान से दूसरे कान तक होते हुए रिडल की किताब में दर्ज हुई कि नेहरू को अमेरिकी राष्ट्रपति से ज्यादा दिलचस्पी उनकी 33 वर्षीय पत्नी जैकलीन में और जेएफके की 27 वर्षीय बहन पैट (पैट्रीशिया) कैनेडी में था।
रिडल ने तो बाद में एक इंटरव्यू में यह भी खुलासा किया कि नेहरू जैकलीन के इस कदर दीवाने हो गए थे कि अपने बिस्तर के सिरहाने जैकलीन की फोटो रखने लगे थे!!!
खैर! इस किताब में वैसे तो नेहरू की विदेश नीति और कैनेडी दंपति के नेहरू व इंदिरा के बारे में उनके विचारों पर और भी रौशनी डाली गई है, लेकिन उन तथ्यों का उपयोग सिर्फ कांग्रेस पोषित तथाकथित बुद्धिजीवियों को चुप कराने में ही किया जा सकता है। मोदी सरकार की भी दिलचस्पी मात्र इसी में है। वरना क्यों नहीं इस बात की जांच होनी चाहिए कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारत-चीन युद्ध के समय कहीं हनी-ट्रैप के शिकार तो नहीं हुए थे? उनके संबंध में ऐसे कई किस्से सुनने- पढ़ने को मिलते हैं, जिससे यह आशंका बलवती होती है कि भारत- चीन युद्ध के समय उनकी निर्णय क्षमता को किन्हीं बाहरी ताकतों ने (हनी-ट्रैप के जरिए) प्रभावित किया हो सकता है। बड़ा सवाल यह है कि युद्ध में उन्होंने भारतीय वायु सेना को दुश्मन फौजों पर हमले की अनुमति क्यों नहीं दी? जबकि चीन की वायु सेना तब भारत की वायु सेना के मुकाबले कमजोर थी। सीमा पर चीनी सैनिक ऊंचाई वाली पोजीशन पर थे, जबकि भारतीय सैनिक नीचे की पोजीशन पर। इस स्थिति में वायु सेना भारतीय सैनिकों की अच्छी तरह से मदद कर युद्ध को भारत के पक्ष में मोड़ सकती थी, लेकिन नेहरू जी ने उसे ऐसा करने का आदेश नहीं दिया।
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि क्या वजह थी, जो नेहरू ने चीन को भारत का एक बड़ा भू-भाग हड़प लेने दिया और संसद में अपनी नाकामी का यह कहकर बचाव किया कि (चीन के कब्जाए) उस इलाके में तो घास का एक तिनका तक नहीं उगता। वह हमारे किस काम की? आखिर नेहरू किस दबाव में चीन की ज्यादतियों को बर्दाश्त कर रहे थे? क्या उनके जीवन में एडविना, जैकलीन और सरोजनी नायडू जैसा कोई और किरदार भी था, जिससे लोग- बाग वाकिफ नहीं थे !!
इसके अलावा, क्या इस बात को नजरअंदाज किया जा सकता है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता अनायास मिल रही थी, लेकिन नेहरू जी ने उसे चीन को दे दिया। एक दुश्मन देश पर ऐसी मेहरबानी क्यों? आज चीन इसी ताकत के बल पर पाकिस्तान और आतंकियों के पक्ष में वीटो कर देता है और भारत हाथ मल कर रह जाता है…
ऊपर से देखने में ये सवाल भले ही दूर की कौड़ी लगें, मगर फिर भी, अपनी जगह गलत नहीं हैं। इतिहास के ना जाने कितने प्रसंग हैं, जो सालों बाद राज की आलमारियों से बाहर आते हैं। जैसे अब बाहर आ रहे हैं। नए तथ्यों, नई जानकारियों की रौशनी में अतीत के हर पन्ने, हर शब्द, हर लिखावट को फिर से जांचने- परखने का मौका लोगों को मिल रहा है। इसलिए हर सवाल महत्वपूर्ण है।
गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के चीन के साथ MoU की हकीकत क्या है?
नेहरू से राहुल गांधी कुछ सीखें या ना सीखें, मोदी जी को पूरे प्रकरण से जरूर सीखना चाहिए। नेहरू के क्रिया-कलापों पर ब्रूस रिडल का खुलासा बरसों बाद आज भारतीयों के दिल में पूर्व पीएम के लिए सिर्फ एक अवमानना का भाव पैदा कर सकता है, कुछ हद तक उनके मन में कांग्रेस का अवमूल्यन भी कर सकता है, लेकिन देश के जख्मों को भर नहीं सकता। इसलिए मोदी जी को चाहिए कि वह राहुल गांधी समेत पूरे गांधी परिवार के चीन से रिश्तों पर खुलासे के लिए किसी ब्रूस रिडल का इंतजार ना करें। गांधी परिवार, कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी नीत सरकार के बीच जिस किसी एमओयू की चर्चा है, उसकी सच्चाई जनता के सामने आनी चाहिए। नेहरू ने किन दबावों में आकर चीन से हार स्वीकार की (भारतीय वायु सेना के हाथ बांधकर) और हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर उसे कब्जा कर लेने दिया, यह तो आम भारतीय कभी नहीं जान पाएगा (जब तक इस संबंध में कोई ठोस सूचना कहीं से डी-क्लासीफाई ना हो)… आम लोगों के लिए यह जानना भी मुश्किल होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को मिल रही स्थायी सदस्यता नेहरू ने किस दबाव अथवा प्रलोभन में चीन को भेंट कर दी थी!!
इसलिए गांधी परिवार, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के संबंधों पर खुलासा राहुल को कोई भी नसीहत देने से ज्यादा जरूरी है। और यह खुलासा पचास साल बाद नहीं, जितनी जल्दी हो, भारत के हित में उतना अच्छा!