मीरा–भायंदर का जर्जर ST डिपो अब भी असली बदलाव की प्रतीक्षा में
नजमुल हसन रिज़वी
मीरा–भायंदर: भायंदर (पश्चिम) स्थित जर्जर एसटी डेपो के पुनर्निर्माण की वर्षों पुरानी घोषणा भले ही शिलान्यास समारोह तक पहुँच गई हो, पर वास्तविक स्थिति जस की तस बनी हुई है। राज्य के परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक, जिन्होंने पदभार ग्रहण करते समय इस डेपो को दुरुस्त करना अपनी शीर्ष प्राथमिकता बताया था, ने नवनिर्मित बस डेपो, पार्किंग प्लाज़ा और मार्केट यार्ड के भूमिपूजन का आयोजन किया।
लेकिन भाषणों, बैनरों और राजनीतिक चमक-दमक के बीच सच्चाई यह है कि, पुराना डेपो अब भी ढहने की कगार पर है, कर्मचारी असुरक्षित और अस्वच्छ परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं, और यात्री घंटों बसों के इंतज़ार में खड़े रहते हैं। यह स्थिति मंत्री के कार्यभार संभालने के पूरे एक वर्ष बाद भी बदली नहीं है।
जर्जर ढांचा, एक वर्ष की देरी
भायंदर का यह एसटी डेपो प्रशासनिक उदासीनता का वर्षों पुराना प्रतीक है।
टूटी छत, पीने के पानी की सुविधा का अभाव, अपर्याप्त बैठने की व्यवस्था और रिसती दीवारें—इन सबके बीच कर्मचारी और यात्री रोजाना खतरे के साये में रहते हैं।
पिछले वर्ष जब सरनाईक ने पदभार ग्रहण किया था, तब मीडिया में सबसे पहले इसी डेपो की बदहाल तस्वीरें सामने आई थीं। इसके बावजूद, पूरे 12 महीने केवल भूमिपूजन के आयोजन में ही बीत गए, जबकि वास्तविक निर्माण कार्य शुरू होने में अभी भी समय लगेगा।
समारोह में मंत्री सरनाईक ने कहा, “प्लानिंग, डिज़ाइन, सीआरज़ेड अनुमति और लेआउट में समय लगा। यह डेपो मीरा–भायंदर के भविष्य की पहचान बनेगा।”
लेकिन वह ‘भविष्य’ कब आएगा—इस पर मौन छाया रहा।
समयसीमा पर चुप्पी, यात्रियों की परेशानी जारी
न निर्माण की कोई समयसीमा घोषित हुई, न पार्किंग प्लाज़ा या मार्केट यार्ड की। आम अनुभवों को देखते हुए, नागरिकों का अनुमान है कि यह प्रकल्प वर्षों तक खिंच सकता है—संभवतः अगले महापालिका चुनावों के बाद तक।
तब तक यात्रियों को उसी जर्जर डेपो पर निर्भर रहना होगा, जहाँ बसों की कमी से लंबा इंतज़ार, कर्मचारियों के लिए असुरक्षित कार्यस्थल, पीने के पानी व स्वच्छ शौचालयों का अभाव, संरचनात्मक खतरे—यथावत बने हुए हैं।
चुनावी लाभ, जनता की अनदेखी?
चुनाव नज़दीक होने से इस शिलान्यास के समय पर सवाल उठने लगे हैं। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सालों से अटके इस प्रकल्प को अब चुनावी लाभ के लिए कागज़ों पर आगे बढ़ाया जा रहा है, जबकि वास्तविक कार्यवाही शून्य है।
वादे चमकदार, हकीकत खस्ताहाल
समारोह में सरनाईक ने कहा कि, “मीरा–भायंदर का विकास मेरी ज़िम्मेदारी है। यह नया डेपो स्वर्णिम अध्याय होगा।”
लेकिन जनता पूछ रही है—
अगर केवल भूमिपूजन में एक साल लग सकता है, तो निर्माण में कितने साल लगेंगे?
क्या यह प्रकल्प वर्तमान शासनकाल में पूरा हो पाएगा?
मीरा–भायंदर को फिलहाल जिन बातों की तात्कालिक आवश्यकता है वो जर्जर डेपो की प्राथमिक मरम्मत, अस्थायी पीने के पानी और स्वच्छता की सुविधा, यात्रियों की भीड़ संभालने के लिए अतिरिक्त बसें, निर्माण कार्य की सार्वजनिक समयसीमा और मासिक प्रगति रिपोर्ट।
जब तक यह ज़मीनी सुधार नहीं किए जाते, नागरिकों का कहना है कि नया प्रकल्प केवल घोषणाओं और तालियों तक सीमित रह जाएगा—जबकि पुराना डेपो रोज़ाना हजारों लोगों की सुरक्षा, सुविधा और गरिमा को खतरे में डालता रहेगा।
शिलान्यास हो चुका है—
लेकिन मीरा–भायंदर को अब भी असली बदलाव का इंतजार है।
