सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया पर मंगलवार को लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई, और पूरा माहौल उस समय और तीखा हो गया जब मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने प्रशांत भूषण को बीच में रोकते हुए साफ चेतावनी दी कि वे दलीलों की सीमा न लांघें। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और प्रशांत भूषण ने आयोग की पूरी प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा किया। सिंघवी ने अदालत को बताया कि आयोग ने तेज शहरीकरण और जनसंख्या के पलायन को जो कारण बताया है, वह न केवल अस्पष्ट है बल्कि दशकों से जारी स्वाभाविक सामाजिक बदलाव को अचानक “विशेष सुधार” का आधार बना देना कानून का सीधा उल्लंघन है। उनका कहना था कि नियमों के अनुसार किसी भी क्षेत्र में विशेष सुधार तभी संभव है जब उस क्षेत्र के लिए विशिष्ट और ठोस कारण दिए जाएँ, जबकि आयोग ने कई राज्यों के सभी क्षेत्रों के लिए एक ही तर्क देकर देशभर में SIR लागू कर दी, जो नियमों के अनुरूप नहीं है। प्रशांत भूषण ने इस प्रक्रिया को अभूतपूर्व बताते हुए कहा कि यह विशेष सुधार नहीं बल्कि मतदाता सूची को लगभग शून्य से दोबारा तैयार करने जैसी व्यापक कार्रवाई है। उन्होंने बीएलओ कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव का मुद्दा उठाया और कुछ मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि काम के तनाव में कई बीएलओ कर्मचारियों ने अपनी जान तक दे दी। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि SIR के बाद भी लाखों डुप्लिकेट नाम सूची में बने हुए हैं। लेकिन जब उन्होंने यह आरोप लगाया कि चुनाव आयोग “निरंकुश और हुकूमशाह पद्धति” से काम कर रहा है, तभी मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने तीखे स्वर में उन्हें रोका और कहा—“आप दलील से आगे बढ़कर सीधे आरोप लगाने लगे हैं। कृपया खुद को सिर्फ कानूनी तर्कों तक सीमित रखें।” खंडपीठ ने साफ कर दिया कि अदालत में भाषण या राजनीतिक आरोप नहीं, केवल न्यायसंगत तर्क स्वीकार किए जाएँगे। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पश्चिम बंगाल में ब्लॉक स्तर के अधिकारियों पर हुए हमलों का मुद्दा उठाया, जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने संक्षिप्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अधिकारी इस पर ध्यान देंगे और उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने सुनवाई 4 दिसंबर तक स्थगित कर दी है और प्रशांत भूषण को अपने बाकी तर्क उसी दिन पूरा करने के निर्देश दिए हैं। मतदाता सूची की इस व्यापक पुनरावृत्ति प्रक्रिया की वैधता को लेकर देशभर की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश पर टिकी हैं।
