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पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार कार्यालय से स्वतंत्रता संग्राम के नायक भगत सिंह और उनके दो सहयोगियों राजगुरु और सुखदेव से संबंधित न्यायिक रिकॉर्ड मांगे गए। इस मांग को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया कि अदालत के आदेश तक वो कुछ नहीं कर सकते। सात अक्टूबर 1930 का रिकॉर्ड मांगा गया है। भगत सिंह और उनके दोनों साथियों को एक साल बाद 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी। यह मांग भगत सिंह मोमोरियल फाउंडेशन की ओर से गई।
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान के अध्यक्ष इम्तियाज रशीद कुरैशी ने लाहौर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार कार्यालय में एक आवेदन दायर किया, जिसमें लाहौर उच्च न्यायालय के तीन सदस्यीय विशेष न्यायाधिकरण से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के न्यायिक रिकॉर्ड की मांग की गई। यह रिकार्ड सात अक्टूबर, 1930 की है। लाहौर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार कार्यालय ने अनुरोध स्वीकार करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह फाउंडेशन को रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करा सकता।
कुरैशी ने कहा, “लाहौर उच्च न्यायालय के उप रजिस्ट्रार ताहिर हुसैन ने कहा कि जब तक उच्च न्यायालय भगत सिंह और अन्य लोगों का न्यायिक रिकॉर्ड फाउंडेशन को उपलब्ध कराने का आदेश नहीं देता, तब तक उनका कार्यालय ऐसा नहीं कर सकता।” उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार कार्यालय का न्यायिक रिकॉर्ड उपलब्ध कराने से इनकार करना घोर अन्याय है। उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में लाहौर उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे।
भगत सिंह ने उपमहाद्वीप की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकूमत ने 23 साल की उम्र में भगत सिंह को फांसी दे दी थी। उन पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने का आरोप था। उन पर मुकदमा चला और उन्हें उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गयी। उनके साहस और बलिदान की भावना तथा उनके आदर्शवाद ने उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे लोकप्रिय नायकों में से एक बना दिया।
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