याचिकाकर्ताओं में फिल्म में फिल्माए गए कंटेंट पर गंभीर आपत्ति जताई गई हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की दायर याचिका दावा किया गया है कि यह मुकदमा बहुत संवेदनशील मुद्दे के बारे में है और इसे कला की स्वतंत्रता” के रूप में हल्के में नहीं लिया जा सकता है। फिल्म उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण के समक्ष लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की ओर से दायर याचिका में वकील ध्रुतिमान जोशी ने दलील दी कि कथित तौर पर पुरोहित के जीवन को दर्शाने वाली फिल्म की रिलीज के करीब होने के कारण इसकी तत्काल समीक्षा की जानी चाहिए। फिल्म के ट्रेलर और प्रचार पोस्टर में पुरोहित जैसा दिखने वाला एक सैन्य अधिकारी वर्दी में दिख रहा है, जो भारतीय सेना की सैन्य खुफिया इकाई में सेवारत था। पुरोहित को 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी। अदालत ने मुकदमे के निष्कर्ष तक मीडिया चर्चा को सीमित करने का आदेश दिया था। मालेगांव विस्फोट के एक अन्य आरोपी समीर कुलकर्णी ने भी मामले पर मीडिया बहस के खिलाफ पिछले आदेश का हवाला देते हुए फिल्म की रिलीज को चुनौती दी। तीसरे याचिकाकर्ता नदीम खान ने दावा किया कि फिल्म का ट्रेलर मुसलमानों के खिलाफ हानिकारक रूढ़ियों को मजबूत करता है, आरोप लगाया कि यह मुसलमानों द्वारा भारत के प्रति दुश्मनी का सुझाव देता है और झूठी कहानियों को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भी फिल्म की रिलीज पर उचित निर्णय लेने का आग्रह करते हुए पहले के अदालती आदेश का हवाला दिया। द नेशन एट स्टेक की 15 दिसंबर को रिलीज को चुनौती देने वाली तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है। फिल्म 2008 के मालेगांव बम विस्फोट की घटनाओं पर आधारित है। वर्ष 2008 में मालेगांव के भीकू चौक पर एक मोटरसाइकिल पर बम लगा हुआ था, जो कथित तौर पर पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर की थी। इस विस्फोट में आधा दर्जन लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे।